कुंदन कुमार/गया. गया में एक गांव ऐसा भी है जहां देश सेवा की पराकाष्ठा ऐसी है कि लोग उस गांव को विलेज आफ आर्मी के नाम से जानते हैं. लगभग हर परिवार ने देश सेवा के लिए सोल्जर दिया है. यह आजकल में नहीं हुआ, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है. दरअसल इस गांव का नाम चिरियांवा है, जो अतरी प्रखंड क्षेत्र में पहाड़ों की गोद में बसा हुआ है. इस गांव में 80 के करीब मकान हैं. लगभग हर घर में आर्मी, बीएसएफ, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ या बिहार पुलिस के जवान हैं, जो राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी सेवा दे रहे हैं.
1960 से शुरू हुआ सिलसिल आज तक जारी
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गांव के युवाओं का सेना में जाने का सिलसिला 1960 में शुरू हुआ, जब गांव के रहने वाले रंजीत सिंह पहली बार इस गांव से आर्मी के जवान बने और यह सिलसिला आज भी जारी है. गांव के करीब 100 से अधिक युवा विभिन्न डिफेंस सेक्टर जैसे आर्मी, बीएसएफ, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ तथा बिहार पुलिस में सेवा दे रहे हैं. कई तो रिटायर्ड हो गएं हैं. इस गांव में कुछ घर ऐसे हैं, जिनकी तीसरी पीढ़ी भी फौज में सेवा दे रही है.
यह गांव गया जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर पहाड़ों की गोद में बसा हुआ है. आज से 2 वर्ष पूर्व तक इस गांव में जाने के लिए कोई सड़क नहीं थी और ग्रामीण पहाड़ के रास्ते गांव में जाते थे, लेकिन ग्रामीणों के अथक प्रयास के बाद जनप्रतिनिधियों ने इस गांव पर ध्यान दिया और पहाड़ काटकर सड़क बनाई और अब लोग इसी रास्ते से आवागमन करते हैं.
बच्चा कर रहे आर्मी में जाने की तैयारी
गांव के युवाओं में देशभक्ति का जुनून इस कदर है कि गांव का हर एक बच्चा सुबह होते ही आर्मी की तैयारी मे जुट जाता है. सेना से रिटायर फौजी बच्चों और युवाओं को प्रशिक्षण देते है. आज भी इस गांव में दर्जनों युवा हैं जो अग्निवीर की तैयारी में जुटे हुए हैं. गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है, जहां इस गांव के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा मिलती है. माध्यमिक या उच्च शिक्षा के लिए गांव के बच्चों को दूसरे गांव या अतरी प्रखंड मुख्यालय जाना पड़ता है.
छुट्टी में घर आए जवान ने बताई गांव की कहानी
छुट्टी में घर आए आर्मी के जवान चंदन कुमार बताते हैं कि गांव के अधिकांश युवा आर्मी में जाते हैं. इसके अलावे बीएसएफ, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ, बिहार पुलिस मे भी युवा अपनी सेवा दे रहे हैं. वहीं, रिटायर्ड आर्मी महेंद्र सिंह बताते हैं कि गांव में आने के लिए कोई सड़क नहीं थी. कोई बिमार पड़ता था तो यहीं मौत हो जाती थी, लेकिन दो वर्ष पूर्व गांव में पहाड़ काटकर रास्ता बनाया गया.अब लोगों को सहुलियत हो रही है. इन्होंने बताया कि नेताओं की नजर में चिरियांवा गांव भारत के नक्शे में भी नहीं था, चूंकि यह गांव पहाड़ की गोद में बसा हुआ है.लोगों को इस गांव के बारे में जानकारी नहीं थी लेकिन जब इस गांव के युवा डिफेंस सेक्टर में जाने लगे, तब धीरे-धीरे इस गांव को पहचान मिलने लगी.
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FIRST PUBLISHED : May 24, 2023, 13:18 IST